Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 10
________________ [ ४ ] कभी स्वप्न में भी करू ना किनारा ॥ सदा लोक सेवा का दृढ़ व्रत गहूं मैं ||२॥ सताया किसी से मै कैसा ही न माथे पै बल अपने में नेक बुराई के बदले लुटा ज ऊँ मैं धर्म - वेदी पै सब करूँ काम ऐसा करें याद सब 'अमर' धर्म हिंत लाख ॥ इति ॥ जाऊँ । लाऊँ ॥ भलाई चहूं मैं ॥३॥ अगर वीर न जगाता ? अगर वीर स्वामी हमें ना जगाता, तो भारत में कैसे नया रङ्ग आता ? ध्रु. चदज ज्ञान का सत्य - सूरज न होता तो कैसे अविद्या अंधेरा न बचता पशु एक भी यज्ञ बलि से, बने ईश धन । जन ॥ मुश्किल सहूं मैं ॥४॥ Jain Education International अहिंसा का गर्जन न जो वह सुनाता ? २ || म नव न जो यह बताता तो पापो के दल पे विजय कौन पाता ? ३॥ सभी जाति आपस में लड़ - लड़ के मरती न जो विश्व से प्रेम करना सिखाता ? ४ || नशाता ? १।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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