Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 51
________________ [ ४५ ] महाभारत क्या शिक्षा देता है चाल-शिक्षा दे रही जी हमको रामायण अति भारी शिक्षा दे रहा जी हमको, महाभारत हितकारी ॥ ध्र. । १ पितृ भक्ति करने में करदी हद भीषमने भारी । राजपाट सब तजकर बन गये, धन्य वाल ब्रह्मचारी ? २ एक लव्य ने करदी सारे शिष्यो में वेदारी, अपना अंगूठा काट द्रोण को, भेट दई अतिभारी । ३ जूवा खेल युधिष्ठिर जीने अपनी बात विगारी, राज्य घर सब हारे भाई, हारी द्रोपदी नारी ॥ ४ अत्याचार किया द्रोपदी पै दुर्योधन ने भारी । जलदी ही फल दिया जुल्मने कोख कुल संहारी ।। ५ कष्ट पड़े पर सत्य धर्म की करता है रखवारी। सत ही द्रोपदी की लज्जा राखी सभा मँझारी ।। ६ परोपकार निःस्वार्थ सिखाती, कुन्ती माता प्यारी ब्राह्मण के बदले राक्षस के भेजा सुत सुखकारी ।। ७ दुष्टो की संगति से बिलकुल जाती है मतिमारी। कौरव संग भीषमने गायें चोरी विराट मंझारी । ८ सुलह कराने खातीर सज्जन करते कोशिस भारी। पांडव कौरव वैर मिटावन बन यये दूत मुरारी ।। है प्रेम भाव में छोटे बड़ों का भाव न रखो विकारी। रण में अर्जुन का रथ हांका खुद ही कुंज विहारी ॥ १० गृहस्थ धर्म पालन कर पांडव हो गये मुनि व्रतधारी। धर्म शूरमा बनकर बन गये, अमर सदा अधिकारी ।। हिसार १९८७ चातुर्मास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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