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मास खाना महापाप है तर्ज-चाचा दोडियोरे चूही काटन आई
मांसाहार सेरे, क्यों ना तुम शरमाते ॥ध्र. १ मांस भखन से पाप होता है जन्म जन्म दुःख पाते,
आगम - वेद - कुरान - वाईवल सबके सब बतलाते । २ अपने यदि कांटा भी लगे तो वे सुध हो चिल्लाते,
लेकिन निर्दई बन पशुओं पे खट खट छरा चलाते।। ३ मूत्र बिन्दु लग जावे कहीं तो घिन से नाक चढ़ाते ।
किन्तु उसी के अण्डे छीं - छी कैसे चट कर जाते ।। ४ बन गुलाम रसना के कैसे जोर जुल्म तुम ढाते । - अनगिन मुर्दे रख के पेट में कवरिस्तान बनाते ।। ५ समझो - समझो अबतो समझो अमर तुम्हें समझाते, छोड़ो मांस का खाना यदि तुम्हें अपने को सुख चाहते।
हिसार १९८७ चातुर्मास
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