Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ . [ ७३ ] "पुस्तक" पुस्तक ! तुम हो कितनी सुन्दर ! बड़ी बिलक्षण ! बड़ी मनोहर ! मंगलमय अस्तित्वि तुम्हारा, लगता है, प्राणों से प्यारा !! अक्षर - अक्षर मधुर अनूठा विना तुम्हारे सब जग झूठा ! बहते विमल भाव के झरने, त्रिविध ताप जगती का हरने । पढ़ते ही हो दूर अँधेरा, ____ अन्तर्मन में स्वर्ण सबेरा। कागज का तुम जड़ तन धारे करती नित हित मौन इशारे !! स्वर्ग भूमि, पाताल, नदी, नभ, प्रतिबिम्बित है तुम में सब जग। भूत, भविष्य और, वर्तमान से, भेंट कराती बड़ी शान से !! छिपे तुम्हारे मृदु पृष्ठों पर, . वीर, बुद्ध, यदुनन्दन, रघुवर! जब मन चाहें तब ही पावन, दर्शन कर सकते मन भावन !! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103