Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 85
________________ [ ७६ ] 66 अछूत क्रन्दन " 'अछूत' ? क्या नाम रखा हमारा, चले हृदय पै रह-रह दुधारा । घृणा टपकती प्रति अक्षरों से, किए सभी भाँति नरेतरों - से || गिनें गिनायें नित हिन्दुओं में, घुंसें हमारे बल पता न पाया पर बन्धुता का, तड़ाग में वस्त्र मलीन धोलें, रहा सदा वर्तन शत्रुता का ॥ स्वदेह श्व- शूकर भी झकीलें । पर न हम धो मुँह हाथ पावें, निराश वापिस बस लौट आवें ॥ सजावट निराली, प्रभु मन्दिरों की, वजती सदा परन्तु हम हा ! घुसने न पाते, Jain Education International * उठा सड़ा कुक्कुर कौंसिलों में । पायल रंडियों की । जगत्पिता दर्श न पुत्र पाते ॥ - गोद लेते, गजब कि सस्नेह मुख चूम लेते । समीप में हम यदि पहुंच जाते, बिदक भगें भट, बकते बकाते ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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