Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 86
________________ [ ८० ] बनें भक्त जब वे चुटिया कटा के, बड़ी खुशी से गोमांस खाके । अजी, मियाँजी ! कह तब बुलावे, झपट सिराहने पर ला बिठावें ॥ बुरा हमारा बस हिन्दु होना, भला विधर्मी अहिन्दु, होना। समूल ही बुद्धि गई तुम्हारी, विचित्र - सी है जड़ता तुम्हारी ।। सदैव सेवा करते तुम्हारी, ___अमूल्य बीती हा ? यह आयु सारी। हमें सँभाला तुमने कभी क्या ? 'मनुष्य भी' हो तुम सोचा कभी क्या ? शराब पीवें, गोमांस खावें, दवा विदेशी सब चाट जावें। तथापि ना धर्म गया तुम्हारा, भगा कि पल्ला भिड़ते हमारा । नहीं महीसुर, अतिशूद्र ही हैं, नहीं समुन्नत शिर, पैर ही हैं ! मनुष्य तो हैं अब तो सँभालो, गरीब भाई बिगड़े हमें अब बचालो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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