Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 84
________________ [ ७८ ] मैं कौन हूं ''मैं न हूं किसी तरह भी हीन ! अनल अमल आनन्द - जलधि का मैं हूं सुखिया मीन !! संसारी झंझट का चहुंदिशी बिछा हुआ है जाल, बिछा रहे मुझको न कभी भी होता तनिक न ख्याल ! . मैं तो हूं अपने में लवलीन ! आत्म - लक्ष्य से मुझे डिगाते हों अरबों आघात, वज्र - प्रकृति का बना हुआ हूं क्या डिगने की बात, स्वप्न में भी न बन गा दीन ! भव - सागर से तैर रहा हूं हुआ समझ लो पार, क्या चिन्ता अब खुलो खुला वह मोक्षपुरी का द्वार, विश्व में मैं हूं इक स्वाधीन ! हानि लाभ हो, स्तुति - निन्दा हो, मान और अपमान, अच्छा - बुरा भले कुछ भी हो, मैं सब से बेमान, कौन क्या देगा लेगा छीन ! अन्धकार विध्वस्त हुआ है, बढ़ा ज्ञान - आलोक, 'अमर' शान्ति सन्देश सुनेगा सकल चराचर लोक, समुन्नत हूं मैं नित्य नवीन !! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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