Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 88
________________ [ ८२ ] धरा का देव प्राणों की आहुति दे कर भी दुःखित जन का करता वाण । हानि देख पर की जो तड़पे, वही धरा का देव महान् ॥ रोता आया मानव अच्छा हो अब हँसता और दूसरे रोतों जैसे बने हँसाता जग में, जाए । Jain Education International भो, जाए || को क्षमा पर्व पर्युषण घृणा, घृणा से, वैर, वंर से, कभी शान्त हो सकते क्या ? कभी खून से सने वस्त्र को, खून ही से धो सकते धो सकते क्या ? क्षमा, शान्ति, सद्भाव, स्नेह की, गंगा की निर्मल धारा । गहरी डुबकी लगा हृदय से, धो डालो कलिमल सारा || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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