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[ ८१ ] कर्म . योग
सत्वहीन नर बातें करते, कर्म - योग से कोसों दूर । मिट्टी के कच्चे घट की ज्यों, जीवन होता चकनाचूर ॥
स्वप्न स्वप्न हैं स्वप्नों से क्या, होता जीवन का निर्माण ? श्रम की सतत साधना में ही, रहा हुआ है जन - कल्याण ।।
विश्वास
घोर निराशा - तमस् घिरा हो, विश्वासों के दीप जलाओ । सब - कुछ टूटे' टूट गिरे, परमत अपना विश्वास गिराओ ॥
विश्व बदलता, विश्वासों पर, विश्वासों पर विजय - पराजय । विश्वासों के बल झुकता है, सहसा दुर्गम,... अचल हिमालय ॥
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