Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 101
________________ [ १५ ] प्रभु से प्रार्थना हे प्रभु वीर, दया के सागर । सब गुण आगर ज्ञान उजागर ॥१॥ जब तक जीऊँ हँस - हँस जीऊँ । सत्य - अहिंसा मधुरस पीऊँ ।।२।। छोडू लोभ - घमण्ड बुराई । चाहूं सबकी नित्य भलाई ॥३॥ जो करना सो अच्छा करना । फिर दुनियाँ में किससे डरना ॥४॥ हे प्रभु, मेरा मन हो सुन्दर । वाणी सुन्दर, जीवन सुन्दर ॥५॥ अभ्यास एक - एक यदि पेड़ लगाओ, तो तुम बाग लगा दोगे । एक - एक यदि ईंट जोड़ो, तो तुम भवन बना लोगे ॥ एक - एक यदि पैसा जोड़ो, तो बन जाओगे धनवान । एक - एक यदि अक्षर सीखो, तो बन जाओगे विद्वान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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