Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 90
________________ [ ८४ ] वसन्त का स्वागत पतझड़ आता है, उसे रोकना यत्न जीर्ण शीर्ण गिरते रोना धोना कौन पतझड़ जाता है, नव वसन्त हंसता जीवन का आनन्द मधुर मधुरतम - Jain Education International - - हिंसा, ध्वस्त हुए पीड़ा जन महक आएगा, व्यर्थ है । पत्तों पर, अर्थ है ? महा श्रमण महावीर वीर ! तुम्हारे पद पंकज युग, इस धरती पर जिधर चले | कदम - कदम पर दिव्य भाव के, सुरभित, स्वर्णिम पुष्प खिले ॥ - - उसी में, है मिलता ॥ आएगा- खिलता । घृणा वैर के मन में निष्काम उठी केसर कण्टक, कारी । प्रेम की, क्यारी || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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