Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 98
________________ [ २ ] स्वर्ग - नरक स्वर्ग कहाँ है, नरक कहाँ है ? पूछ रहे हैं, कब से जन - जन । किन्तु, न देख रहे हैं कैसा, है अपने में, अपना ही मन ।। स्वच्छ - निर्मल अपना ही मन, दिव्य स्वर्ग है मंगलकारी। हिंसक, क्रूर, विकारी अपना-- मन ही है नरक अमंगलकारी ।। और, न कोई दुःख - मूल है, दुःख - मूल है, निज अज्ञान । दुःख मुक्त हो, सुख पाना तोनिज स्वरूप पर रखिए ध्यान ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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