Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ . [ ८५] पवित्रता और वीरता तन धोने से क्या होना है, जब तक मन न धुले । सब - कुछ बदले इक पलभर में, जब अन्तर बदले । बाह्य शत्रु पर विजय प्राप्त कर, क्या उछले मचले ? वीर वही जो अन्तस्तल के रिपुदल को कुचले ॥ दाता अल - संचित करने वाला वह, सागर कितना गंदा खारा । मुक्त बरसने वाले घन की, कितनी मधु निर्मल जल - धारा ।। दाता सुख के द्वार खोलता, पाता जन्म - जन्म सुख - शान्ति । किन्तु, संग्रही सुख के बदले, पाता सदा दुःख उद्भ्रान्ति ॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103