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मैं कौन हूं ''मैं न हूं किसी तरह भी हीन ! अनल अमल आनन्द - जलधि का मैं हूं सुखिया मीन !! संसारी झंझट का चहुंदिशी बिछा हुआ है जाल, बिछा रहे मुझको न कभी भी होता तनिक न ख्याल !
. मैं तो हूं अपने में लवलीन ! आत्म - लक्ष्य से मुझे डिगाते हों अरबों आघात, वज्र - प्रकृति का बना हुआ हूं क्या डिगने की बात,
स्वप्न में भी न बन गा दीन ! भव - सागर से तैर रहा हूं हुआ समझ लो पार, क्या चिन्ता अब खुलो खुला वह मोक्षपुरी का द्वार,
विश्व में मैं हूं इक स्वाधीन ! हानि लाभ हो, स्तुति - निन्दा हो, मान और अपमान, अच्छा - बुरा भले कुछ भी हो, मैं सब से बेमान,
कौन क्या देगा लेगा छीन !
अन्धकार विध्वस्त हुआ है, बढ़ा ज्ञान - आलोक, 'अमर' शान्ति सन्देश सुनेगा सकल चराचर लोक,
समुन्नत हूं मैं नित्य नवीन !!
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