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[ ७५ ] "ओस" परोपकारी बनना तुम्हें तो अमूल्य शिक्षा कुछ ओस से लो। करो सभी सत्कृत गुप्तता से
प्रसिद्धि का नाम न भूल से लो। समस्त संसार प्रसुप्त होता यदा तदा भू पर ओस माती। निशा - निशा में कर आर्द्र खेती प्रभात होते जग में न पाती ।
"अनित्यता" लक्ष्मी का आनन्दी झला, टूटेगा जल्दी, क्यों झूला !
खाली ही हाथों जाएगा,
कौड़ी भी ना ले पाएगा। आना है तो जाना भी है पाना है तो खोना भी है। . .चाहे कोई कैसा ही हो,
हँसना है तो रोना भी है।
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