Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ [ ६५ ] एक जन माता का सच्चा जैनत्व बुढिया माँ ने आशा साह को क्या कहा ? तर्ज--सखी सावन बहार आई झुलाये जिसका जी चाहे अरे आशा ! इसे आशा बंधाना ही मुनासिर है। शरण में आये को अब तो, बचाना ही मुनसिब है ॥ध्र.. १ पड़ा किस सोच में बेटा ! नहीं है सोच का मौका, समझ ले अब तो जैनी पद निभाना ही मुनसिब है । २ जरा तू देख तो हिम्मत भला इस धाम पन्ना की, तुझे भी इसकी हिम्मत अब, बढ़ाना ही मुनासिब है। ३ तेरे पर आयेंगे संकट बड़े भारी मैं मान हं, धरम के वास्ते संकट उठाना ही मुनासिब है। ४ बने सब भोरू महाराजा किसी ने भी नहीं रक्खा, सबक उनको दिलेरी का सिखाना ही मुनासिब है। ५ अमर रखले उदयसिंह को तू अपने पास वेखटके, हुकुम मेरा तुझे अब यह बजाना ही मुनासिब है। महेन्द्रगढ़ १९८७ चातुर्मास + + + बनवीर के मारे जाने के डर से बालक उदयसिंह को लेकर धाय पन्ना सब राजाओ के पास गई लेकिन आश्रय देने में सबने अपनी असमर्थता प्रगट की। अन्ततः कमलमीर दुर्गाध्यक्ष जैन वीर आशा साह के पास पहुंची। बुढ़िया माता के कहने से उदयसिंह को आश्रय दिया ! धन्य शरणागत रक्षिका धन्य। + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103