Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 52
________________ [ ४६ ] प्रभू भक्ति तर्ज- जिसको न अपने देश का निज जाती का अभिमान जगदीश के पद पंकजों में नित्य शीस झुकाइये आनन्द परमानन्द फिर तद्रूप होकर पाइयें ।। टे. 11 १ संसार के सुख भोग तूफानी समन्दर है अतः । प्रभू नाम नौका में मजे से बैठ कर तर जाइये ॥ २ चिरकाल से दुःख देते आये हैं प्रबल कर्मों के फल । भगवान भजन तलवार से, कुहराम इनमें मचाइये || ३ प्रभू के बताये मार्ग पर चलना ही प्रभु की भक्ति है । अतएव शम दम को हृदय के भाव से अपनाइये || ¿ ४ मत मतान्तर के बखेडों में धरा क्या है अमर । आदर्श मत अपना तो केवल ईश- भक्त बनाइये || भक्ति आश्रम रिवाडी Jain Education International For Private & Personal Use Only बैशाख १६६१ www.jainelibrary.org

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