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[ ५७ ]
पाप का फल
पाथ कृत हरगीज ना खाली जायेगा
वक्त आनेपर गजव रंग लायगा ॥ ध्रु..
१ क्या जवानी के नशे में झूलता चामके मृदु रंग पर क्य फूलता । फूलसा सौन्दर्य झट मुरझाएगा ?
२ स्वार्थ वा परिवार का मेला लगा कष्ट में साथी सभी
आके फिर कोई न मुख
३ मौत सर पर एक दिन मंडरायेगी ताकते दुनियाँ की सब चकरायेगी । लाड़ला तन खाक में मिल जायेगा ||
देंगे दगा
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दिखलायेगा ||
४ दैत्य पति रावण तड़प कर मर गया, अपने पापों का मजा वह चख गया, बाद वदफेली से नर मर जायगा ॥ ५ पापकी बदबू कभी छिपती नहीं, आग रूइ में कभी छिनती नहीं ।
ढोल अपयश का खुला पिट जायेगा । ६ धर्म हो जग में अमर इक सार है, जिन्दगी इसके बिना निःसार है । साथ परभव में यह वस इक जायगा
संगीतिका से
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