Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 62
________________ [ ५६ ] अनेकान्त दृष्टि १ सरिता तट वर्ती नगरों में रहता है आराम अपार किन्तु बाढ़ में वही मचाती, प्रलय काल सा हाहाकार २ अग्नि कृपा से चलता है सब पाक आदि जगका व्यवहार किन्तु उसी से छिनभर में हो भस्म-राशी होता घरवार ३ सघन जलद सूखी खेती में, करता नव जीवन संचार वही पलक में कृषक काल हो करता हाय सर्वं संहार । ४ विषलव अणुसा भी दिखलाता, यमपुर का झट रोद्र द्वार किन्तु बचा दुःसाध्य रोग से बने कभी जीवन दातार ५ भला बुरा एकान्त जगत में कोई न देखा आँख पसार अखिल सृष्टी गुण दोषमयी है,किससे करे द्वष या प्यार संगीतिका से साल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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