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अनेकान्त दृष्टि १ सरिता तट वर्ती नगरों में रहता है आराम अपार
किन्तु बाढ़ में वही मचाती, प्रलय काल सा हाहाकार २ अग्नि कृपा से चलता है सब पाक आदि जगका व्यवहार
किन्तु उसी से छिनभर में हो भस्म-राशी होता घरवार ३ सघन जलद सूखी खेती में, करता नव जीवन संचार
वही पलक में कृषक काल हो करता हाय सर्वं संहार । ४ विषलव अणुसा भी दिखलाता, यमपुर का झट रोद्र द्वार
किन्तु बचा दुःसाध्य रोग से बने कभी जीवन दातार ५ भला बुरा एकान्त जगत में कोई न देखा आँख पसार अखिल सृष्टी गुण दोषमयी है,किससे करे द्वष या प्यार
संगीतिका से
साल
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