Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 61
________________ _ [ ५५ ] जीवन संग्राम ! जोवन का रण क्षेत्र है. उठो करो तैयारियाँ सोते पड़े हो क्यों बृथा, ले रहे हो अंगड़ाइयां ॥ध्र. १ भूलो न सब कुछ है यही पर जन्म की भी हो फिकर रहती कभी सदा नहीं मिठी - मिठी मिठाइयाँ । २ छोड़ो सभी बुराइयां जीवन पवित्र लों बना, वरना नरक में सड़ना है, मुंह पै उडेंगी हवाइयाँ ।। ३ आये हो मानव लोक में कुछ तो भलाई कर चलो। जिंदा रखेगी मरे पै भी, तुमको तुम्हारी भलाइयाँ ४ दीनों की रक्षा के लिए, सर्वस्व की भी भेंट दो खोलो खजाने ! कब तलक बांधे फिरोगे चावियां ? ५ पूर्ण मनुष्य बन जावो तुम देवगणों के भी प्रभू । दुर करो सभी अमर जो है हृदय की खामियाँ ॥ संगीतिका से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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