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व्यर्थ जीवन गजव करते हो ये भारी वृथा जीवन गवाते हो नहीं कुछ सोचते दिल में योंहीं आफत उठाते हो ॥ध्र. १ किसी पुरुषार्थ के बल से मिला है जन्म नर तुमको,
विषय भोगादि में फंसकर क्यों सिंधू में डुवाते हो। २ जरासी जिन्दगानी पर हुए हो क्यों दिवाने तुम,
भला छल छंद रच क्यों दीन जीवों को सताते हो । ३ हिला गर्दन विकल मुंह कर महा वैराग्य में आकर
बड़ा अफसोस शिक्षा तुम सदा सबको सुनाते हो। ४ दयामय धर्म उत्तम है गहो इसको मेरे मित्रो तजो यह दुर्गति नारग अमर तुम जिसको चाहते हो
संगीतिका से
6CNM
ताल
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