Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 64
________________ [ ५८ ] कलयुगी मित्र ! जमाने हाल में कैसा भयंकर फेर आया है जहां मैं मित्रता के नाम पर अंधेर छाया है ॥ध्रु. १ जहां चांदी भवानी की छना - छन है तिजोरी में वहां झट मित्र दलने कूद द्रढ़ आसन जमाया है । २ पड़ी जब आफते भारी, फंसा हत भाग्य गदिश में बनी के चार सब भागे न टूडे खोज पाया है। ३ सुबह बाजार में घूमें परस्पर डाल गल बाहें । दुपहरी में जो विगड़ी शाम को बारंट आया है। जरा भी गुप्त कोई बात गर निज मित्र की परचें करे बदनाम खुल्ला, ढोल गलियों में बजाया है। ५ भलाई ऐसे मित्रों से अमर क्या खाक होवेगी वचन मन में कि जिनके रात दिन सा भेद पाया है संगीतिका से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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