Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 57
________________ [ ५१ } जय जिनेन्द्र जय जिनेन्द्र ! विनम्र वंदन पूर्णतः स्वीकार हो दीन भक्तों के तुम्हीं, सर्वस्व सर्वाधार हो ॥ध्र . १ मोह मद मायादि दोषों से प्रथक हो सर्वदा शान्ति समता सत्य के गुण सिंधु अपरंपार हो । २ देखते हस्तामलक सम, ज्ञान से भुवनत्रयी, सूर्य से भी अनन्त ज्योतिवंत ज्ञानागार हो । ३ आपकी मंगलमयी करूणा सुधा से शीध्र ही, पूर्ण परमानन्द हो भव दुःख का संहार हो । ४ धर्म पर मरना सिखाता आपका आदर्श ही, धर्म के और धर्मवीरों के तुम्हीं श्रृंगार हों। ५ धर्म की जग में ध्वजा लहराए जय जय नाद से। .. हममें ऐसा उग्रतम, बल बुद्धि का संचार हो । ६ एकता के सूत्र में गुथ जाय जैन समाज सब प्रेम झरने का अमर प्रतिपल अमित विस्तार हो संगीता से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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