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[ ४७ ] चण्ड कौशिक का उद्धार (महावीर वाणी)
तर्ज-संग दिल गल जायेंगे मुझको जरा रोने तो दो मैं नहीं ठहरूंगा हगिज मार्ग मेरा छोड़ दो।
बन्धुओं ! मेरी तरफ की व्यर्थ चिता छोड़ दो ।। ध्र. ।। १ स्वप्न में भी भय के मारे भीत मैं होता नहीं।
मैं तो भय का भी हूं भय हा-हू मचाना छोड़ दो। २ मौत मेरे सामने कर जोड़ थर - थर काँपती।
- मैं मदारी मौत का झूठा डरावा छोड़ दो। ३ अग्नि जल विष शास्त्र इनका देह तक संबंध है।
आत्मा तो अखण्ड अविनाशी है आगा छोड़ दो। ४ हम मुनि है स्थूल दुनियाँ से निराला मार्ग है।
मृत्यु में जीवन है लेना अपनी बाधा छोड़ दो। ५ जो तुम्हारा सर्प है हो मित्र है मेरा वही ।
मित्र के मिलने में देरी यो लगाना छोड़ दो। विश्व हित के अमर पागल बना फिरता ही हूं मैं । देखना होता है क्या ध्येय से डिगाना छोड़ दो।
. महेन्द्रगढ़ वीर जयन्ति
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