Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 49
________________ - [ ४३ ] संप तर्ज पंजाबी हो जावो हो जावो कुनि देशकी रक्षा पर। सब मिल आजावो-२ इकवार संप की छाया में ॥ध्रः॥ जिनमें संप सदा रहता है, उनके नित्य पड़ा रहता है ... चरणो में संसार ।। १ ॥ फूट पुजारी जो होते हैं वे निज गौरव सब खोते हैं । . पाते हैं धिक्कार ॥२॥ दुर्बल जन ही संप सहारे, बन जाते हैं वीर करारे । संप सदा जयकार ॥ ३ ॥ दीन पतंगे यदि सब मिल के कूद पड़े. दीपक पै उछल के .. करे छिनक में छार ॥ ४ ॥ .... निर्बल तार परस्पर मिल के, महावली गजराज जकड़ते निज बन्धन में डार ॥ ५ ॥ बूंद-बूंद मिल दरिया बहते, नहीं किसी के रोके रहते । होता अति विस्तार ॥ ६ ॥ कैचा की वद आदत छोड़ो अमर सुई से नाता जोड़ों सुखी बनो नर नार ।। ७ ।। फालगुन नारनोल १९७६ ॥ इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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