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संप
तर्ज पंजाबी हो जावो हो जावो कुनि देशकी रक्षा पर। सब मिल आजावो-२ इकवार संप की छाया में ॥ध्रः॥ जिनमें संप सदा रहता है, उनके नित्य पड़ा रहता है
... चरणो में संसार ।। १ ॥ फूट पुजारी जो होते हैं वे निज गौरव सब खोते हैं ।
. पाते हैं धिक्कार ॥२॥ दुर्बल जन ही संप सहारे, बन जाते हैं वीर करारे ।
संप सदा जयकार ॥ ३ ॥ दीन पतंगे यदि सब मिल के कूद पड़े. दीपक पै उछल के
.. करे छिनक में छार ॥ ४ ॥ .... निर्बल तार परस्पर मिल के, महावली गजराज जकड़ते
निज बन्धन में डार ॥ ५ ॥ बूंद-बूंद मिल दरिया बहते, नहीं किसी के रोके रहते ।
होता अति विस्तार ॥ ६ ॥ कैचा की वद आदत छोड़ो अमर सुई से नाता जोड़ों
सुखी बनो नर नार ।। ७ ।। फालगुन नारनोल १९७६
॥ इति ।
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