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ब्रह्मचर्य तर्ज-कौन कहता है कि जालिम को सजा मिलती नहीं संसार में सर्वत्र इक यह, ब्रह्मचर्य प्रधान है
अस्तित्व नर का है यही, सब आश्रमों की जान है ।।टे.॥ १ बल बुद्धि विद्या वैभवादी का यह मूल श्रोत है,
सादर सभी धर्मों में इसका, हो रहा गुण - गान है ? २ चिर आयु अब होती नहीं, क्यों बाल व्याह का राज्य है
व्यभिचार सेवी पशु यहाँ चन्दरोज का महमान है। ३ जो आज कहलाते युवा वे वृद्ध से भी वृद्ध है।
मुख पर पड़ी है झूरियाँ कटि झुक रही ज्यो कमान है। ४ जब खोखली जड़ हो गई कैसे विटप फूले फले,
व्यभिचारियों की होती अति निर्बल विकल संतान है। ५ हा ! भीष्म से योद्धा भला, अव देश में होते कहाँ, __ मजनू बनें लाखों फिरे पद-पद अमित अपमान है। ६ अव ब्रह्मचर्य विहीन भारत दीन - से - भी हीन है,
संसार का गुरुराज अब तो हो गया हैवान है। ७ यदि पूर्वजो सा प्राप्त करना है अमर गौरव तो फिर,
व्रतराज के वनिये व्रती जग में इसी का मान है।
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