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________________ [ ४४ ] ब्रह्मचर्य तर्ज-कौन कहता है कि जालिम को सजा मिलती नहीं संसार में सर्वत्र इक यह, ब्रह्मचर्य प्रधान है अस्तित्व नर का है यही, सब आश्रमों की जान है ।।टे.॥ १ बल बुद्धि विद्या वैभवादी का यह मूल श्रोत है, सादर सभी धर्मों में इसका, हो रहा गुण - गान है ? २ चिर आयु अब होती नहीं, क्यों बाल व्याह का राज्य है व्यभिचार सेवी पशु यहाँ चन्दरोज का महमान है। ३ जो आज कहलाते युवा वे वृद्ध से भी वृद्ध है। मुख पर पड़ी है झूरियाँ कटि झुक रही ज्यो कमान है। ४ जब खोखली जड़ हो गई कैसे विटप फूले फले, व्यभिचारियों की होती अति निर्बल विकल संतान है। ५ हा ! भीष्म से योद्धा भला, अव देश में होते कहाँ, __ मजनू बनें लाखों फिरे पद-पद अमित अपमान है। ६ अव ब्रह्मचर्य विहीन भारत दीन - से - भी हीन है, संसार का गुरुराज अब तो हो गया हैवान है। ७ यदि पूर्वजो सा प्राप्त करना है अमर गौरव तो फिर, व्रतराज के वनिये व्रती जग में इसी का मान है। --(०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001377
Book TitleBhavanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1996
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size4 MB
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