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[ ४२ ] रामायण के आदर्श तर्ज मेरे मौला मदीने बुलाले मुझे। रामायण के नरोत्तम जगाते हमें
अपने गौरव की याद दिलाते हमें ।। टे. ।। १ राज्यपद ठुकरा दिया वह जंगलो में चल दिया तात की प्रणपूर्ति को जो चाहिये था कर दिया
गुरुजन - पूजा यूं राम दिखाते हमें । २ राम केवट से मिले सस्नेह बाँह पसार कर
भीलनी के वैर झूठे खाए खूब सराह कर
. . छोटों से भो यू प्रेम सिखाते हमें ।। ३ भ्रात का संग दुःख में छोड़ा नहीं वनमें रहा,
मुंह नहीं उपर उठाया, जानकी चरणों रहा, __ लक्ष्मण भाई के लक्षण जिताते हमें ।। ४ प्राण की वाजी लगाकर लंक गड़ में जा बड़बड़ा .. शोध सीता की करी यह काम था कैसा कड़ा।
सेवाः पथ पर यूं हनुमत चलाते हमें ।। ५ स्याज्य है यदि बंधु भी अन्याय के पथ पर चले पूज्य है यदि शत्रु भी पथ न्याय से न जरा टले ।
करके खुद ही विभीषण बताते हमें ।। ६ स्वाभीमानी वीर लवकुश मातृ भक्त वने अमर भातृ प्रेमी भरत ने भी कुछ नहीं रक्खी कसर नश्वर जग में अमर ये बनाते हमें ।।
गोकुलगढ़ वैशाख १९९१ ॥ इति.॥
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