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सती सीता
तर्ज-बढ़ा दे आज की शब और चखें पीर थोड़ी सी हमारे हिन्द में सीता सती कैसी हुई देखो
न ऐसी अन्य देशो में कहीं पर भी हुई देखो ॥ टेह. ॥ १ सभी सुख छोड़ महलों के भया वह शून्य अटवी में । पती के संग पैदल ही मुदित मन से गई देखो ।
२ रही वृक्षों के नीचे और पहन एक बसन कैसी
३ चुराकर ले गया रावण, हहा जालिमने दिलं भर,
नीरस पत्र फल खाये फकीरी ले लई देखो ||
सतोव्रत भंग करने को यातनाएँ भी देई देखो ।
४ उसी की कैद में रहकर, उसी को ही निडरता से । कहे कटु वाक्य कामी, खर, अधम निर्लज्ज इसे देखो ।
५ दिखाया सत्य बे खटके, अनलके कुण्ड में कूदी हुआ ट शीत जल - झरना, अलौकिकता नई देखो ।
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६ बनेंगी नारियाँ जब यहाँ सती सीता सी अब फिर से तभी भारत अमर होगा अखिल भूतल जमी देखो ।
नारलोल पोष १६७६
॥ इति. ॥
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