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गुरु गौतम तर्ज ठिकाना पूछते हो क्या हमारा क्या ठिलाना है गूरु गौतम के चरणों में, सदा निज शिर झुकायेंगे। अटल श्रद्धा व भक्ति से, विमल गुण गान गायेंगे ॥घ्र, पढ़ी वेदादि विद्याएँ, बने विख्यात दिग् विजयी । हजारों वादियों के बाद में, छक्के छुड़ायेंगे ॥१ किया प्रभु वीर से भी वाद, निज हठवाद सब छोड़ा। हुए गणधर पदाधीश्वर, न कुछ देरी लगाते हैं ॥२ अहिंसा तत्व समझाकर, किए पशु यज्ञ विध्वन्सन । जगत में वीर की जयकार विजय डंका बजाते हैं ॥३ बड़ा है सत्य ही केवल, नहीं पदवी बड़ी कुछ भी। स्वयं निज पक्ष तज आनन्द को, घर जा खिमाते हैं ॥४ मिले केशी मुनिश्वर से, किया संवाद संशय हर। परस्पर दूध पानी ज्यों, उभय शासन मिलाते हैं ॥५ गये कैलास पर्वत पर, दिया उपदेश हितकारी । अज्ञानी तापसों को ज्ञान की ज्योति दिखाते हैं ॥६ जगत के संत जन र वते, सदा दिन चित्त मंदिर में। अमर होकर पतित पावन, अमर पद पूर्ण पाते हैं ॥७
दीपावली देहनी १९६१ ॥ इति. ॥
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