Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 41
________________ [ ३५ ] आज के श्रावक श्रावको ने अपना सब गौरव गँवाया इन दिनो उच्चतम जीवन निरा, पामर बनाया इन दिनो ॥ध्रु. १ शास्त्र का व्याख्यान अब क्यों कर, भला आये पसंद | भैरवी की लहर में, आनन्द पाये इन दिनो ॥ २ छान कर पीते हैं पानी स्थावरो की है दया | कंठ पर दोनों के भट खंजर चलाया इन दिनो ॥ आप तो खुद तो दिन में दो - दो वार दौने चाटते । भूखे मरते भाई को धक्का दिलाया इन दिनो ॥ ४ आके धर्म स्थान में भी छोड़ते न प्रपंचता । धर्म महिमा का वृथा पाखण्ड छाया इन दिनो ।। ५ धर्म रक्षक अब अमर आनन्द से श्रावक कहाँ । नाम धारी श्रावको का दिन है आया इन दिनो || ॥ इति. ॥ फीति कृति ३ 2 भूलोक में आये हो कुछ तो कीर्ति भण्डार आगे के लिए भी, याद कर १ दे डालियो जो पास हो, सर्वस्व दीनों के लिए | कोड़ी पे कोड़ी जोड़कर धरती पे ना धर जाइयो । २ जो शत्रु अति ही दुःख दे उसका भी हित कीजे सदा । पिछली बुरी बातो को करके याद मत टर जाइयो । ३ दुष्कर्म करने के हृदय में जब विचार उठें तभी । धर ध्यान रावण आदी के, इतिहास पर डर जाइयो || ४ यह सार है नर जिन्दगी का, लीजियो बनियो अमर । जीना उचित हो जीइयो, मरना उचित मर जाइयो || ॥ इति ॥ Jain Education International कृति कर जाइयो । भर जाइयो | ध्रु | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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