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[ ३३ ]
वैराग्य वर्षा
तर्ज-मुखड़ा क्या देखे दरपन में क्या फूले निज मन में मूरख क्या फूले निज मन में, कुछ नहीं घरा फूलन में, मूरख क्या फूले निज मनमें ।।टे. १ अंट-संट खा पीकर क्या, शक्ति बढ़ावे तनमें ।
आखिर पानी का परपोटा, विनस जाय पल छिन में । २ कोमल - कोमल फूल बिछाकर, क्या सोवे तू महल में ।
याद राख उस दिन की भी, जब सोना होगा अंगन में । ३ कूद-कूद मतलव बिन मतलव, क्या खुश होय लड़न में ।
' देख एक लडैया रावण कैसा मरा था रण में । ४ मोटर वग्घी बैठे ऐंठ से पैर न घरे धरन में ।
देख द्रोपदी नंगे पैरों, फिरी किसी दिन वनमें ।। ५ आँखें मीचे क्या धनमद में, चांदी की छन - छन में ।
देखे दर - दर भीख मांगते, तनिक न वस्त्र बदन में ।। ६ दुनियाँ भर की गपशप मारे, वैठ मित्र परिजन में । __ वेही दूर - दूर करे एक दिन, नफरत करें मिलन में । ७ सीधी - सीधी बात बना और सीधा रहन सहन में । . और नहीं कुछ अमर यहाँ यही बस रहे रहन में ।
महेन्द्रगढ़ १६३१ दिसम्बर ॥ इति.॥
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