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अमर जीवन तर्ज भलाई कर चलो जग में तुम्हारा भी भला होगा। प्रतिक्षण क्षीण जीबन में, अमर खुदको बना देना ।
भविष्यत की प्रजाको अपने, पद चिन्हों चला देना ॥धु. १ दुःखी दलितो की सेवा में, विनय के साथ जुट जाना।
अखिल वैभव बिना झिझके बिना ठिटके लुटा देना । असत् पथ भूल करके भी, कभी स्वीकार ना करना।
प्रलोभन में न फंसकर, सत्यपथ पर सर कटा देना ।। ३ क्रमागत कुप्रथाओं का भ्रमो का मूढताओं का।
अधः पाती निशां मानव, जगत में से मिट: देना ॥ ४ जिनेश्वर बुद्ध हरी हर हो, मुहम्मद हो या ईसा हो ।
सभी सत्यव्रती के आगे, निज मस्तक झुका देना। ६ सहस्त्रादिक प्रयत्नों से मृतक सम देश वालों में।
नया जीवन नया उत्साह, नया युग ला दिखा देना ।। ७ अधिक क्या जन्म लेने का यह अन्तिम सार ले लेना। अमर निज मृत्यु के दिन शत्रुओंको रूला देना ।।
कानोड पोष १६६२
॥ इति ॥
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