Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 34
________________ [ २८ ] धर्म का पतन तर्ज सखी सावन बहार आई झुलाए जिसका जी चाहे वहाना धर्मका लेकर गजव कैसा मचाते है अखिल मानव जगत पर जाल, मायाका विछाते है ॥ध्र. चढ़ा पत्थर के देवों पर, हजारों भैंसे और बकरे। खटा - खट खंजरों से खून के नाले बहाते हो ॥१ खडी कर के दो कही ईंटे बनाई सीतला माता। भगों भग जातरी आते, पुजापा ला चढ़ाते हैं ॥२ तरसते दो - दो दाने को हजारों बंधु अति भूखे ।। हवन में घी मनो फूके अकल पर धूल जमाते हो ॥३ बने एजेण्ट मुर्दो के चलाया श्राद्ध का धंधा। पितर के नाम पर भूदेव ताजा माला खाते हैं ॥४ अछतों को न घुसने दें कभी भी धर्म स्थानों में। अगर सत्कर्म करलें तो भी धड़ से उड़ाते हैं ॥५ बताकर हिन्दुओं को काफीर युवकों को। खुदा ईश्वर पै मस्जिद, मंदिरों पं नित लड़ाते हैं ॥६ दबोचे कान बैठा धर्म आगे धर्म वालों के । अमर चाहा जिधर ले धर्म की गर्दन घुमाते हो ॥७ नारनोल - पर्दूषण १९६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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