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[ १३ ]
अपना करे
क्यों न अपकार
कैसा भी कोई भी शान्ति पूर्ण उपकार रूप में करता है प्रतिकार
क्षमा का खुला रखे नित द्वार ? ३ भेद मिटाकर, करले हृदय उदार पथ पर सब लुटा दिये भण्डार विश्व का बने एक आधार ? ४
अपना पर का दान दक्षिणा के
मन वाणी और कर्म सभी में अमृत का संचार आस-पास में लाखों कोसो नहीं तनीक भी क्षार "अमर" है मृत्युन्जय हुङ्कार ? ५ ॥ इति ॥
भक्तों से परेशान भगवान
मनुष्यों ? क्यों मुझे जबरन नमस्ते है तुम्हें, तुम तो पिता हं विश्व का फिर भी लिटा कर पालने में नहीं लगती मुझे सर्दी, नहीं लगती मुझे गर्मी
उढाते क्यों दुशाले और पंखे क्यों बुलाते हो ? ३ स्वयं मैं शुद्ध निर्मल हूं, तथा औरों को करता हूं
समझ का फेर हैं प्रतिदिन, किसे मल-मल नहलाते हो ?४ भला मुझ निर्विकारी का, विवाह क्या रंग लायेगा बिछा कर पुष्प शैया प्रेम से, किसको सुलाते हो ? ५
अपन जैसा बनाते हो मेरी प्रभूता घटाते हो । १६.. समझते बाल छोटा सा लोरियाँ, दे-दे सुलाते हो ॥२
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