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रावण से दैत्य की कैद में सत्यवती सीता रही, भेले भयंकर कष्ट पर, मानी नहीं बदकारियाँ ॥२ जौहर हुआ चितौड़ में, गौरव बढ़ा मेवाड़ का जिन्दा हजारों जल भरी, हँसती हुई सुकुमारियाँ ॥ ३ लक्ष्मी थी लक्ष्मी हिन्द की, खूब लड़ी रण भूमि में, देश हित जोगन बनी छोड़ के महल अटारियाँ ||४
रानी थी पृथ्वीराज की कैसी भयङ्कर शेरनी काँपा था अकबर आँखों में फटने लगी थी तारियाँ ॥५ गौरव पुराना याद कर, साहस की बिजली अब भरो उठो 'अमर' बहिनो करो उन्नति की तैयारियां ॥ ६ ॥ इति. ॥
धर्म का पतन !
बहाना धर्म का करके, गजब किस तौर ढाते हैं, अखिल मानव जगत पर जाल, माया का बिछाते हैं ॥ घ्र.. चढ़ा पत्थर के देवों पर हजारों भैंसे और बकरे, खटाखट खंजरों से खून का दरिया बहाते हैं ॥१ खड़ी कर दो कहीं ईंटें बनाई शीतला माता,
भगों - भग जातरी आते, पुजा भी ला चढ़ाते हैं ॥२ तरसते दो दो दानों को हजारों भाई अति भूखे, हवन में घी मनों फूकें अकल पे धूल छाई है || ३
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