Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 24
________________ [ १८ ] दया बिन बावरिया.....! दया बिन बावरिया, हीरा जन्म गॅवाये। .. कि पत्थर से दिल को, क्यों ना फूल बनाये ॥ध्र . कोमलता का भाव न मन में फिर क्या सुन्दरता से तन में। जीवन विष बरसाये ॥१ दीन दुखी की सेवा कर ले, पाप - कालिमा अपनी हर ले। तिहुं जग मङ्गल गाये ॥२ धन लक्ष्मी का गर्व न करना, आखिर को सब तज कर मरना। पर - हित क्यों न लुटाये ॥३ यह जीवन है एक कहानी, पाप पुण्य है शेष निशानी । 'अमर' सत्य समझाये ॥४ ॥ इति. ॥ अतीत की नारियाँ भारत में कैसी थी एक दिन, शीतलवती कुल नारियां । धर्म के पथ पै जो हुई हँस - हँस के बलिहारियां ॥ध्र. राजा विराट के महल में, पक्की रही थी द्रौपदी कीचक कुमौत मरा वृथा, खाली गई सब वारियाँ ॥१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary:org

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