Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 28
________________ [ २२ ] प्रेमी के वश में होता है. सारा ही संसार वीर का यह फर्माना ! ॥१ पशुओं में देखा जाता है, प्रेमांकुर सुखकार प्रेम नहीं हैं जिनके दिल में, वे कैसे नरनार ! . निन्द्य नर जनम बिताना है ! ॥२ द्वेष भाब न रखो किसी से, द्वष महा दुःखकार बिना प्रेम के मिटे न हर्गिज भीषण पापाचार वैर से वैर बढ़ाना है ? ॥३ दूध और पानी से सीखो, करना सच्चा प्यार भेद - भाव रहा नहीं कुछ भी, सहते सुख दुखलार विपत में प्रेम निभाना है ।।४ स्वार्थ रहित निष्पाप प्रेम ही, कहलाता अविकार 'पृथ्वीचन्द्र' चरण रज सेवी, कहता बीच ही सार, प्रेम से चित्त लगाना है ! ॥५ स्वार्थ का संसार ? स्वार्थ का संसार है, स्वार्थ का संसार ? ध्र. मात तात सुत बन्धु मित्रगण, और मनोहर नार, प्यार करें सब स्वार्थ पूर्ति से बिन मतलब खूखार ॥१ सुख में सब जन करें प्रेम से, हाँ - हाँ जी •जी कार कष्ट पड़े सब होते न्यारे, देकर बहु धिक्कार ॥२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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