Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 26
________________ [ २० ] वन एजेन्ट मुर्दो के, चलाया श्राद्ध का धंधा । पितर के नाम पर भूदेव, ताजा माल खाते हैं ॥४ अछुतो को न घुसने दें, कभी भी धर्म स्थानों में, . अगर सत्कर्म करलें तो, भी धड़ से शिर उड़ाते हैं ॥५ दबोचे कान बैठा धर्म, आगे धर्म वालों के, 'अमर' चाहा जिधर, ले धर्म की गर्दन घुमाते हैं ॥६ ॥ इति.॥ क्या किया ! तूने आके जगत् में बता क्या किया, __ काम अच्छा सुयश का बता क्या किया ! ध्र. पेट दिन रात अपना ही भरता रहा, खा - खा मेवा मिठाई अफरता रहा। ... भूखे मरते न भाई को टुकड़ा दिया ! ॥१ चाही हर्गिज किसी की भलाई नहीं, छोड़ी कुछ भी क्षणों को बुराई नहीं टूटा दिल न किसी का दया से सिया ! ॥२ फूल होकर न लोगों के मस्तक चढ़ा, पाठ जीवन सफलता का कुछ ना पढ़ा। .. काँटा बनके 'अमर' गर जिया क्या जिया ! ॥३ ॥ इति.॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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