Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 18
________________ [ १२"] मिलेगा जो मुझे आनन्द मद में झूम जाउँगा। - हृदय में प्रेम - वीणा की मधुर झनकार लाया हूं ॥१ सुगन्धित पुष्प हूं खिलकर सुगन्धित विश्व भर दूंगा। - कभी भी कम न हो वह गन्ध का भण्डार लाया हूं ॥२ सतायेंगे मुझे क्यों कर कुटिल रिपु काम क्रोधादिक । चमकती ज्ञान की तीक्षण अटल तलवार लाया हूं।।३ पड़े आपत्तियों के वज्र शिर पर क्यों न कितने ही। हटू गा इञ्चना पीछे विजय का सार लाया हूं। ४ मिटेंगे देश कुल और जाति के सब भेद जग में से। अखिल भू पर वसा नर जाति का परिवार लाया हूं ।।५ बदल दूंगा सभी हा - हा भरी यह नर्क की दुनियाँ।। 'अमर' सुन्दर शिवंकर स्वर्ग का संसार लाया हूं ॥६ ॥ इति । - जीवन का सार इसी में है कौन न महिमा का आगार ? प्राप्त हुआ है किसे जगत में पूजा का अधिकार ?ध्र. छोटे से छोटे जीवों पर रखता कृपा अपार अखिल विश्व में सदा बहाता भ्रातृ - भाव की धार प्रेम में डूबा सब संसार ? १ द्वेष - क्लेश का लेश नहीं है, नहीं घृणा कुविचार स्वच्छ हृदय है, उठें कहीं भी नहीं जरा कुविचार , पूर्ण है संयम का अवतार ? २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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