Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 16
________________ [ १० ] अविद्या तमस्तोम दूरी भगा दो ॥१ भले ही करें लोग निन्दा - बुराई । बनें प्राण - बैरी, न मानें भलाई ॥ हमें स्वन्न में भी नहीं रोष आवे । भलाई न छोड़े, भले प्राण जावें ॥२ दुःखी - दीन ज्यों ही कहीं देख पावें। कि त्योंही स्वतः अश्रु - धारा बहावें ।३ सभी भांति आनन्द - भागी बना दे। . खुशी से स्वसंपत्ति सारी लुटा दें ॥४ विपद - ग्रस्त चाहे बनें क्यों न कैसे ? रहें धैर्य - धारी हरिश्चन्द्र जैसे ॥५ प्रति ज्ञात - वाणी कभी भी न छोड़ें। निजोद्दे श की ओर निर्वाध दौड़ें ॥६ किसी को नहीं जन्मतः नीच माने । . अछतादि मिथ्या सभी भेद टाले ॥७ वृणा पापियों से नहीं, पाप से ही। रहें प्रेम से सर्व ही भ्रात से ही ॥८ नहीं चाहते नर्क में दैत्य होना । नहीं चाहते स्वर्ग में देव होना ॥ हमारी प्रभो ? आपसे प्रार्थना है। हमें तो मनुष्यत्व की चाहना है ॥१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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