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अविद्या तमस्तोम दूरी भगा दो ॥१ भले ही करें लोग निन्दा - बुराई ।
बनें प्राण - बैरी, न मानें भलाई ॥ हमें स्वन्न में भी नहीं रोष आवे ।
भलाई न छोड़े, भले प्राण जावें ॥२ दुःखी - दीन ज्यों ही कहीं देख पावें।
कि त्योंही स्वतः अश्रु - धारा बहावें ।३ सभी भांति आनन्द - भागी बना दे।
. खुशी से स्वसंपत्ति सारी लुटा दें ॥४ विपद - ग्रस्त चाहे बनें क्यों न कैसे ?
रहें धैर्य - धारी हरिश्चन्द्र जैसे ॥५ प्रति ज्ञात - वाणी कभी भी न छोड़ें।
निजोद्दे श की ओर निर्वाध दौड़ें ॥६ किसी को नहीं जन्मतः नीच माने ।
. अछतादि मिथ्या सभी भेद टाले ॥७ वृणा पापियों से नहीं, पाप से ही।
रहें प्रेम से सर्व ही भ्रात से ही ॥८ नहीं चाहते नर्क में दैत्य होना ।
नहीं चाहते स्वर्ग में देव होना ॥ हमारी प्रभो ? आपसे प्रार्थना है।
हमें तो मनुष्यत्व की चाहना है ॥१०
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