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[ ११ ]
जीवन में मधु घोल !
खोल मन ! अब भी आँखें खोल ।
उठा लाभ कुछ मिला हुआ है, जीवन अति अनमोल ॥ध्रु.
जग
पति के
प्रेम सुधा पी
अपने मन में
है
चरणों में सोजा,
पागल
होजा ।
अथ इति खोजा
भ्रम की मदिरा ढोल ॥ १
देख दुःखो को भट हिल जा तू
सेवा में तिल तिल पिल जा तू । अद्वैती बन सङ्ग सिल जातू बोल न कुछ भी
'अमर' अमर पथ पर पद घर ले
भवसागर तर ले |
दुस्तर तम अन्दर बाहर खुशबु भर ले
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बोल ||२
जीवन में मधु घोल ||३
।। इति ।।
मनुष्य !
मनुज हूं मैं यहाँ मनुजत्व का उपहार लाया हूं हिमालय सा अतुल कर्तव्य का गिर भार लाया हूं ॥ध्रु.
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