Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 20
________________ [ १४ ] नहीं हूं मैं तुम्हारे मिष्ट मोहन भोग का भूखा वृथा ही नाम ले मेरा, स्वयं मौजे उड़ाते हो ॥६ दया करके मुझे नीचे गिरानां छोड़ दो भक्तों ? 'अमर' मम तुल्य बन कर क्यों, न मेरे पास आते हो ?७ ॥ इति । भारत की देवियाँ ? भारत की नारी एक दिन, देवी कहलाती थी, संसार में सब ठौर - आदर - मान पाती थी ? |ध्र. वनवास में श्री रामजी के, साथ में सीता महलों के वैभव को घृणा करके ठुकराती थी ? १ महारानी झांसी वाली, अपने देश के खातिर ..... ....। - तलवारें दोनों हाथों से, रण में चमकाती थी ? २ चितौड़ में यवनों से अपने, सत की रक्षा को . हँस-हँस के अग्निज्वाला में, सब ही जल जाती थी ?३ पत्नी श्री मंडन मिश्र की, शास्तार्थ करने में . आचार्य शंकर, जैसों के छक्के छड़वाती थी ? ४ मार्तण्ड सा कटु तेज था, वर क्या 'अमर' पूछो दुष्कर्मकारी गुण्डों की आँख मिच जाती थी ? ५ ॥ इति.।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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