Book Title: Bhavanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 9
________________ नाम सुधा की धारा । भवसागर में डूबी नैया, नाम ही एक सहारा वन्दे ॥१॥ जब भी भीर पड़ी भक्तों पे, नाम का मन्त्र उवारा वन्दे ॥२॥ सच्चा है बस नाम प्रभु का, झूठा है जग सारा वन्दे ॥३॥ माया की उलझन में फंसकर, क्यों प्रभु - नाम बिसारा? ॥४॥ नाम मन्त्र के आगे पल में, काम, क्रोध, मद हारा वन्दे ॥५॥ 'अमर' जिधर भी देखा . जग में, नाम ही नाम निहारा वन्दे ।।६।। ॥इति.॥ भव्य भावना प्रभो प्रेम सागर में तेरे बहूं मैं । भ्रमर तेरे चरणों का हर दम रहूं मैं ॥ ध्रु.॥ हद एक इञ्च भी अपनी न राह से। कभी भी न गन्दा करूँ कंठ आह से ॥ . करूं पूरा जो कुछ भी मुख से कहूं मैं ॥१॥ दुखी दुर्बलों का बनू मैं सहारा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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