Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 7
________________ वीर - वन्दन वन्दे वीरं सुवीरं सुधीरं वरम्, . ." शान्तं दान्तं महान्तं सदाप्तं तरम् । ध्र. येन हिंसा मूक - पशु संहारिका विलयी कृता, शान्तिदा देवी दया सर्वत्र संप्रतिसारिता। .. वीत - द्वैतं तमीड़े दयासागरम् । वन्दे १ येन सम्यग् ज्ञान पयासा प्राणिनो विमली कृताः योजयित्वा धर्म मार्गे दुर्जनाः सुजनी कृताः । ___ सर्वज्ञं तं स्वतन्त्रं यजे सादरम् । वन्दे""२ देशना दत्ता स्वतन्त्रा, साम्यभाव प्रसारिणी ., दीन - दुर्बल - रक्षिका, बहु भिन्न भाव विदारिणी। साम्याधारं सहर्ष भजे शंकरम् । वन्दे "३ दीनता - सम्वर्द्धकः किल कर्तृवादः खण्डिताः दैन्यहारी क्रान्तिकारी कर्मवादी मण्डितः ...: भव्य वन्द्य सुदेवं श्रये सन्नरम् । वन्दे ४ ध्यानगम्यो योगिनां यो भावरिपु संहारक: सत्य धर्मोद्धारकः संसार - सागर - तारक: 'पृथ्वीचन्द्र ' नमामि सुसंयम धरम् । वन्दे "५ वीर - वन्दना प्रभो वौर ! तेरा ही केवल सहारा । जगत में न कोई शिवंकर हमारा ॥ध्र.।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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