Book Title: Bhavanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 13
________________ . [ ७ ] प्रभु के बताये मार्ग पर चलना ही प्रभु की भक्ति है अतएव शम दम को हृदय के भाव से अपनाइये ।३ मत मतान्तर के बखेड़ों में धरा क्या है 'अमर' आदर्श मत अपना तो केवल ईश - भक्ति बनाइये ॥४ महावीर ! शान्ति - सुधारस के वर सागर । क्लेश अशेष समूल संहारी ॥ लोक, अलोक विलोक लिये। जग लोचन केवल ज्ञान के धारी॥ शेप, सुरेश, नरेश सभी। प्रण में पद - पङ्कज बारम्बारी ॥ वीर जिनेश्वर धर्म दिनेश्वर । मङ्गल कीजिये मङ्गल कारी ॥ जिन स्तवन ! रसने ! रट लेना, सदा सुरु द शुभ नाम ! ॥ध्रु. ऋषभ अजित सम्भव भवहारी, अभिनन्दन नन्दनता - कारी । सुमति सदा अभिराम ॥रसने...॥१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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