Book Title: Bhavanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 8
________________ [ २ ] सभी ओर कर्मों का है घेरा डाला। कृपा कर दो ऐसी उड़े पारा - पारा ॥१॥ जला ज्ञान दीपक दिखा मार्ग सदसत् ।। भटकते फिरें, घोर धुन्ध पसारा ॥२॥ निकट शीघ्र से शीघ्र अपने बुलालो। पड़े ताकि जग में न आना दुबारा ॥३॥ ॥ इति. ॥ प्रार्थना दीनबन्धो ? ज्ञान सूरज का उजेरा कीजिए। दूर यह अज्ञान का सारा अंधेरा कीजिए ॥ध्र ।। छा रही काली घटायें पाप की चारों तरफ । धर्म की वायु से कलिमल दूर सारा कीजिए ॥११॥ देश को बर्बाद करती है अविद्या पापीनी । दुःखहारी मूल से संहार इसका कीजिए ॥२॥ रूढ़ियों को ही धर्म बस मानते हैं आजकल । नाश जल्दी अब 'अमर' इस मान्यता का कीजिए ॥३॥ ॥ इति. ॥ प्रभु का नाम कैसा है ? नाम प्रभु · का प्यारा वन्दे ।२।।।टे.॥ शक्कर मीठी मिसरी मीठी, Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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