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कभी स्वप्न में भी करू ना किनारा ॥
सदा लोक सेवा का दृढ़ व्रत गहूं मैं ||२॥ सताया किसी से मै कैसा ही न माथे पै बल अपने में नेक
बुराई के बदले
लुटा ज ऊँ मैं धर्म - वेदी पै सब करूँ काम ऐसा करें याद सब
'अमर' धर्म हिंत लाख ॥ इति ॥
जाऊँ ।
लाऊँ ॥
भलाई चहूं मैं ॥३॥
अगर वीर न जगाता ?
अगर वीर स्वामी हमें ना जगाता,
तो भारत में कैसे नया रङ्ग आता ? ध्रु. चदज ज्ञान का सत्य - सूरज
न होता
तो कैसे अविद्या अंधेरा
न बचता पशु एक भी यज्ञ बलि से,
बने ईश
धन ।
जन ॥
मुश्किल सहूं मैं ॥४॥
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अहिंसा का गर्जन न जो वह सुनाता ? २ || म नव न जो यह बताता
तो पापो के दल पे विजय कौन पाता ? ३॥ सभी जाति आपस में लड़ - लड़ के मरती
न जो विश्व से प्रेम करना सिखाता ? ४ ||
नशाता ? १।।
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